पश्चिम बंगाल की कला  

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संगीत

पारम्परिक संगीत भक्ति और सांस्कृतिक गीतों के रूप में है। रबीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखित एवं संयोजित ‘रबीन्द्र संगीत’, जिसे विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ-साथ पारम्परिक लोकगीतों में पिरोया गया है, बंगालियों के सांस्कृतिक जीवन पर सशक्त प्रभाव छोड़ता है।

दृश्य कला

दृश्य कला परम्परा के अनुसार, मुख्यत: मिट्टी की मूर्तियों, पक्की ईंटों (टेराकॉटा) की कृतियों और सज्जा-चित्रों पर आधारित हैं। कोलकाता की इंडियन एसोसियेशन फ़ॉर कल्टीवेशन ऑफ़ साइन्स, द बोस रिसर्च इंस्टिट्यूट और कोलकाता विश्वविद्यालय की विज्ञान प्रयोगशालाओं ने विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान दिया है। 19वीं सदी की सुविख्यात भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान सभा एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल, पश्चिम बंगाल में है। शान्तिनिकेतन में रबीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा स्थापित विश्वभारती विश्वविद्यालय भारतीयता एवं अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक सम्बन्धों के अध्ययन का विश्वप्रसिद्ध केन्द्र है।

कोलकाता की कला

कोलकाता वासी लम्बे समय से साहित्य व कला क्षेत्रों में सक्रिय रहे हैं। 19वीं शताब्दी के मध्य में यहाँ पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित साहित्यिक आन्दोलन का उदय हुआ, जिसने सम्पूर्ण भारत में साहित्यिक पुनर्जागरण किया। इस आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण प्रणेताओं में से एक रवीन्द्रनाथ टैगोर थे, जिन्हें 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। उनकी कविता, संगीत, नाटक और चित्राकला में उल्लेखनीय सृजनात्मकता ने शहर के सांस्कृतिक जीवन का समृद्ध किया।


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