एक्स्प्रेशन त्रुटि: अनपेक्षित उद्गार चिन्ह "२"।

तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-9  

  • इस अनुवाक में ब्रह्मा का बोध कर लेने वाले साधक को पाप-पुण्य के भय से दूर बताया गया है।
  • जिस 'ब्रह्म' की अनुभूति मन के साथ होती है और जिसे वाणी द्वारा अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता, उसे जब कोई साधक अपनी साधना से जान लेता है, तब उसे किसी बात की भी चिन्ता अथवा भय नहीं सताता।
  • जो विद्वान् पाप-पुण्य के कर्मों को समान भाव से जानता है, वह पापों से अपनी रक्षा करने में पूरी तरह समर्थ होता है।
  • जो विद्वान् पाप-पुण्य, दोनों ही कर्मों के बन्धन को जान लेता है, वह दोनों में आसक्त न होकर अपनी रक्षा करने में समर्थ होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9

तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10

तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10 | अनुवाक-11 | अनुवाक-12


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=तैत्तिरीयोपनिषद_ब्रह्मानन्दवल्ली_अनुवाक-9&oldid=600475" से लिया गया