चौथी लोकसभा (1967)  

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वर्ष 1967 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने निचले सदन में क़रीब 60 सीटों को खो दिया। उसे 283 सीटों पर ही जीत हासिल हुई। कांग्रेस ने अब तक चुनावों में 73 प्रतिशत से कम सीटें नहीं जीती थीं, यह उसके लिए बुरा समय था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने दिसम्बर, 1970 तक सीपीआई (एम) के समर्थन से एक अल्पमत वाली सरकार को चलाया। वह आगे अल्पमत की सरकार नहीं चलाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने चुनावों की अवधि से एक वर्ष पहले ही मध्यावधि लोकसभा चुनवों की घोषणा कर दी।

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कांग्रेस की मुश्किलें

वर्ष 1967 तक, सबसे पुरानी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में भी कभी 60 प्रतिशत से कम सीटें नहीं जीती थीं। यहाँ भी कांग्रेस को एक बड़ा झटका सहना पड़ा, क्योंकि बिहार, केरल, उड़ीसा, मद्रास, पंजाब और पश्चिम बंगाल में गैर कांग्रेसी सरकारें स्थापित हुईं। इंदिरा गांधी को, जो रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गयीं थीं, उन्हें 13 मार्च को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इस समय असंतुष्ट आवाज़ों के शांत रखने के लिए इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को भारत का उप प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री नियुक्त किया। जबकि मोरारजी देसाई ने जवाहरलाल नेहरू की मौत के बाद इंदिरा को प्रधानमंत्री बनाए जाने का विरोध किया था।

कांग्रेस का विभाजन

इस लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन ने मोरारजी देसाई को मुखर बनने के लिए मजबूर कर दिया। उन्होंने ऐसे लोगों का चयन किया, जिन्होंने उन्हें कांग्रेस पार्टी आला कमान के ख़िलाफ़ ला खड़ा किया। कांग्रेस ने 12 नवम्बर, 1969 को अनुशासनहीनता के लिए उन्हें निष्कासित कर दिया। इस घटना ने कांग्रेस को दो भागों में बाँट दिया- कांग्रेस (ओ), जिसका नेतृत्व मोरारजी देसाई ने किया, और कांग्रेस (आई), जिसका नेतृत्व इंदिरा गांधी ने किया। इंदिरा गांधी दिसम्बर, 1970 तक सीपीआई (एम) के समर्थन से एक अल्पमत वाली सरकार को चलाया। वह आगे अल्पमत की सरकार नहीं चलाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने चुनावों की अवधि से एक वर्ष पहले ही मध्यावधि लोकसभा चुनवों की घोषणा कर दी।


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