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'''गिरधारी लाल विश्वकर्मा''' पुराने रिकॉर्ड्स के डिजिटाइजेशन का कार्य करते है। इन्होंने [[1932]] से लेकर [[1953]] तक के बारह हज़ार गानों को डिजिटल रूप में बदल दिया है। इस संग्रह में हिंदी फ़िल्मी गीतों के अलावा कई राजस्थानी दुर्लभ गीत भी शामिल हैं।
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'''गिरधारी लाल विश्वकर्मा''' पेंटिंग आर्टिस्ट हैं और [[भारत]] के पश्चिमी [[राजस्थान]] के [[जोधपुर]] में एक हस्तकला व्यवसाय चलाते हैं। उन्हें मास्टर आर्टिस्ट के रूप में भारत के [[राष्ट्रपति]] से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ये पुराने रिकॉर्ड्स के डिजिटाइजेशन का कार्य करते है। इन्होंने [[1932]] से लेकर [[1953]] तक के बारह हज़ार गानों को डिजिटल रूप में बदल दिया है। इस संग्रह में हिंदी फ़िल्मी गीतों के अलावा कई राजस्थानी दुर्लभ गीत भी शामिल हैं।
  
* मूलरूप से बाड़मेर ज़िले के अलमसर गांव के रहने वाले गिरधारी लाल विश्वकर्मा को बचपन में ही रेडियो पर पुराने गीत सुनने का शौक था।  
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*मूलरूप से बाड़मेर ज़िले के अलमसर गांव के रहने वाले गिरधारी लाल विश्वकर्मा को बचपन में ही रेडियो पर पुराने गीत सुनने का शौक था।  
*गिरधारी लाल पेशे से पेंटर हैं और उन्हें पुराने गाने सुनने का शौक है। वे हैण्डीक्राफ्ट उत्पादों पर अपनी कूंची चलाकर, उन्हें सुंदर बनाते हैं।
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*इन्होंने [[2005]] में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
*गिरधारी लाल विश्वकर्मा ने [[2005]] में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
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*गिरधारी लाल का लक्ष्य [[1970]] तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
*बकौल गिरधारी लाल का लक्ष्य [[1970]] तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
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*इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं जिनमें [[हिंदी]] फ़िल्म गीतकोश के आलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं [[गुजराती]], [[मराठी]], [[हिंदी]] व [[अंग्रेज़ी]] में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
*इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं जिनमें हिंदी फ़िल्म गीतकोश के आलावा ‘दो घड़ी मौज, मौज मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं [[गुजराती]], [[मराठी]], [[हिंदी]] व [[अंग्रेज़ी]] में हैं। जिसमें पुरानी फिल्मों से संबंधित कई महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
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*भविष्य में गिरधारी लाल संगीत प्रेमियों के लिए एक कैफे खोलने का विचार कर रहे हैं, जहां वे रिकॉर्ड के लिए एक गैलरी बनाएंगे और संगीत प्रेमियों को उनके मनपसंद गाने अपने संग्रह में से उपलब्ध करवाएंगे। फिलहाल संगीत प्रेमी उनके गानों को यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
*भविष्य में गिरधारी लाल संगीत प्रेमियों के लिए एक कैफे खोलने का विचार कर रहे हैं, जहां वे रिकॉर्ड के लिए एक गैलरी बनाएंगे और संगीत प्रेमियों को उनके मनपसंद गाने अपने अर्काइव में से उपलब्ध करवाएंगे। फिलहाल संगीत प्रेमी उनके खजाने को यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
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*[[1941]] से [[1950]] के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे, जिससे गायकों को विशेष पहचान नहीं मिलती थी। [[1984]] में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक हरमंदिर सिंह ‘हमराज’ की हिंदी फ़िल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। गिरधारीलाल ने इन खाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया और इस प्रकार उन्होंने गायकों को पहचान दिलाई।
  
  
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'''अन्नपूर्णा देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Annapurna Devi'' मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: [[23 अप्रैल]], [[1927]], [[मध्य प्रदेश]]) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का सितार) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार [[अलाउद्दीन ख़ान]] की बेटी और शिष्या हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।
 
  
वर्ष 1950 के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।
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'''अन्नपूर्णा देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Annapurna Devi'' मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: [[23 अप्रैल]], [[1927]], [[मध्य प्रदेश]]) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का [[सितार]]) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार [[अलाउद्दीन ख़ान]] की बेटी और शिष्या हैं। वह विश्व प्रसिद्ध [[सितार वादक]] [[रवि शंकर|पंडित रवि शंकर]] की पूर्व पत्नि हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।
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वर्ष [[1950]] के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।
  
 
यद्यपि अन्नपूर्णा देवी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को कभी भी अपने पेशे के रूप में नहीं लिया और न कोई संगीत का एलबम ही बनाया, फिर भी अभी तक इन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रेम करने वाले प्रत्येक भारतीय से पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है।
 
यद्यपि अन्नपूर्णा देवी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को कभी भी अपने पेशे के रूप में नहीं लिया और न कोई संगीत का एलबम ही बनाया, फिर भी अभी तक इन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रेम करने वाले प्रत्येक भारतीय से पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है।
 
====प्रारम्भिक जीवन====
 
====प्रारम्भिक जीवन====
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{{मुख्य| अन्नपूर्णा देवी का परिचय}}
 
अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा ख़ान) का जन्म [[चैत्र|चैत्र माह]] की [[पूर्णिमा]] को 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अलाउद्दीन ख़ान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था। इनके एकमात्र भाई उस्ताद [[अली अकबर ख़ान]] तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा ख़ान) थीं।
 
अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा ख़ान) का जन्म [[चैत्र|चैत्र माह]] की [[पूर्णिमा]] को 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अलाउद्दीन ख़ान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था। इनके एकमात्र भाई उस्ताद [[अली अकबर ख़ान]] तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा ख़ान) थीं।
==संगीत शिक्षा==
 
बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया, दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु माँ ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया। इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को [[संगीत]] की शिक्षा नहीं देंगे। एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर ख़ान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया। आगे चलकर अन्नपूर्णा देवी ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से सीखा। मैहर में इनके पिता [[अलाउद्दीन ख़ान]] यहां के तत्कालीन महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे। इनके पिता ने जब महाराजा बृजनाथ सिंह को दरबार में यह बताया कि उनको लड़की हुई है तो महाराजा ने स्वयं ही नवजात लड़की का नाम ‘अन्नपूर्णा’ रखा था।
 
 
;पारिवारिक जीवन
 
;पारिवारिक जीवन
 
अलाउद्दीन ख़ान के अनेक शिष्यों में से एक [[रवि शंकर]] भी थे और उनका [[विवाह]] अन्नपूर्णा से करा दिया गया। इन दोनों का विवाह वर्ष [[1941]] में हो गया था। उस समय रवि शंकर की उम्र 21 वर्ष और अन्नपूर्णा की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। हालांकि रवि शंकर एक [[हिन्दू]] परिवार से थे जबकि अन्नपूर्णा मुस्लिम परिवार से परंतु इनके पिता को इस बात से कोई एतराज नहीं था। विवाह से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। विवाह के बाद इनको एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शुभेन्द्र शंकर था, जिनकी मात्र 50 वर्ष की अवस्था में ही वर्ष [[1992]] में निधन हो गया जो अपने पीछे तीन बच्चों और पत्नी को छोड़ गए।
 
अलाउद्दीन ख़ान के अनेक शिष्यों में से एक [[रवि शंकर]] भी थे और उनका [[विवाह]] अन्नपूर्णा से करा दिया गया। इन दोनों का विवाह वर्ष [[1941]] में हो गया था। उस समय रवि शंकर की उम्र 21 वर्ष और अन्नपूर्णा की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। हालांकि रवि शंकर एक [[हिन्दू]] परिवार से थे जबकि अन्नपूर्णा मुस्लिम परिवार से परंतु इनके पिता को इस बात से कोई एतराज नहीं था। विवाह से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। विवाह के बाद इनको एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शुभेन्द्र शंकर था, जिनकी मात्र 50 वर्ष की अवस्था में ही वर्ष [[1992]] में निधन हो गया जो अपने पीछे तीन बच्चों और पत्नी को छोड़ गए।
  
 
लगभग 21 वर्षों तक वैवाहिक जीवन एक साथ व्यतीत करने के बाद अन्नपूर्णा का रवि शंकर के साथ किसी बात को लेकर तलाक हो गया। इसके बाद इन्होंने कभी भी फिर से सार्वजनिक मंच पर अपने गायन-वादन का प्रस्तुतिकरण नहीं किया। ये [[मुंबई]] चली गईं और वहां पर एकाकी जीवन व्यतीत करने लगीं एवं संगीत का शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया। वर्ष [[1982]] में इन्होंने अपने से 13 वर्ष छोटे रूशी कुमार पंड्या से पुन: विवाह कर लिया, जिनका वर्ष [[2013]] में निधन हो गया।
 
लगभग 21 वर्षों तक वैवाहिक जीवन एक साथ व्यतीत करने के बाद अन्नपूर्णा का रवि शंकर के साथ किसी बात को लेकर तलाक हो गया। इसके बाद इन्होंने कभी भी फिर से सार्वजनिक मंच पर अपने गायन-वादन का प्रस्तुतिकरण नहीं किया। ये [[मुंबई]] चली गईं और वहां पर एकाकी जीवन व्यतीत करने लगीं एवं संगीत का शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया। वर्ष [[1982]] में इन्होंने अपने से 13 वर्ष छोटे रूशी कुमार पंड्या से पुन: विवाह कर लिया, जिनका वर्ष [[2013]] में निधन हो गया।
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==संगीत शिक्षा==
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{{मुख्य| अन्नपूर्णा देवी की संगीत शिक्षा}}
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बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया, दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु माँ ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया। इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को [[संगीत]] की शिक्षा नहीं देंगे। एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर ख़ान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया। आगे चलकर अन्नपूर्णा देवी ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से सीखा। मैहर में इनके पिता [[अलाउद्दीन ख़ान]] यहां के तत्कालीन महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे। इनके पिता ने जब महाराजा बृजनाथ सिंह को दरबार में यह बताया कि उनको लड़की हुई है तो महाराजा ने स्वयं ही नवजात लड़की का नाम ‘अन्नपूर्णा’ रखा था।
 
;संगीत इनके परिवार के रग-रग में
 
;संगीत इनके परिवार के रग-रग में
अन्नपूर्णा देवी के पिता अलाउद्दीन ख़ान मैहर महाराज के यहां स्वयं तो एक दरबारी संगीतकार थे ही। इनके चाचा फ़क़ीर अफ्ताबुद्दीन ख़ान और अयेत अली ख़ान अपने पैतृक जन्म स्थान (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इनके भाई [[अली अकबर ख़ान]] प्रसिद्ध और सम्मानित सरोद वादक थे, जिन्होंने [[भारत]] और [[अमेरिका]] में संगीत के अनेकों यादगार कार्यक्रमों में भाग लिया। इनके पूर्व पति और विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भारत तथा विश्व में सबसे बड़े संगीतकार माने जाते हैं। इनके एकमात्र पुत्र शुभेन्द्र शंकर (सुभो) सितार वादन में माहिर थे। सुभो ने सितार वादन में अपनी माता से गहन प्रशिक्षण लिया था। बाद में सुभो को उनके पिता रवि शंकर संगीत में पारंगत करने के लिए अपने साथ लेकर अमेरिका चले गए। शुभेन्द्र शंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के रूप में देश-विदेश में अपनी प्रस्तुति दी।
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अन्नपूर्णा देवी के पिता अलाउद्दीन ख़ान मैहर महाराज के यहां स्वयं तो एक दरबारी संगीतकार थे साथ ही इनके चाचा फ़क़ीर अफ्ताबुद्दीन ख़ान और अयेत अली ख़ान अपने पैतृक जन्म स्थान (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इनके भाई [[अली अकबर ख़ान]] प्रसिद्ध और सम्मानित सरोद वादक थे, जिन्होंने [[भारत]] और [[अमेरिका]] में संगीत के अनेकों यादगार कार्यक्रमों में भाग लिया। इनके पूर्व पति और विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भारत तथा विश्व में सबसे बड़े संगीतकार माने जाते हैं। इनके एकमात्र पुत्र शुभेन्द्र शंकर (सुभो) सितार वादन में माहिर थे। सुभो ने सितार वादन में अपनी माता से गहन प्रशिक्षण लिया था। बाद में सुभो को उनके पिता रवि शंकर संगीत में पारंगत करने के लिए अपने साथ लेकर अमेरिका चले गए। शुभेन्द्र शंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के रूप में देश-विदेश में अपनी प्रस्तुति दी।
;योगदान
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==कॅरियर==
अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर ख़ान। इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया।
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{{मुख्य| अन्नपूर्णा देवी का कॅरियर}}
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अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- [[हरिप्रसाद चौरसिया]], [[निखिल बनर्जी]], अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर ख़ान। इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया।
  
 
अन्नपूर्णा देवी ने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया। कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल देखने को मिल जाता है। इन्होंने हमेशा अपने को मिडिया के प्रचार-प्रसार से दूर रखा। ये हमेशा भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचती रहती थीं।
 
अन्नपूर्णा देवी ने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया। कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल देखने को मिल जाता है। इन्होंने हमेशा अपने को मिडिया के प्रचार-प्रसार से दूर रखा। ये हमेशा भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचती रहती थीं।

११:४६, २३ जून २०१७ का अवतरण

गिरधारी लाल विश्वकर्मा पेंटिंग आर्टिस्ट हैं और भारत के पश्चिमी राजस्थान के जोधपुर में एक हस्तकला व्यवसाय चलाते हैं। उन्हें मास्टर आर्टिस्ट के रूप में भारत के राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। ये पुराने रिकॉर्ड्स के डिजिटाइजेशन का कार्य करते है। इन्होंने 1932 से लेकर 1953 तक के बारह हज़ार गानों को डिजिटल रूप में बदल दिया है। इस संग्रह में हिंदी फ़िल्मी गीतों के अलावा कई राजस्थानी दुर्लभ गीत भी शामिल हैं।

  • मूलरूप से बाड़मेर ज़िले के अलमसर गांव के रहने वाले गिरधारी लाल विश्वकर्मा को बचपन में ही रेडियो पर पुराने गीत सुनने का शौक था।
  • इन्होंने 2005 में कम्प्यूटर से ग्रामोफोन को जोड़कर पुराने रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन का काम शुरू किया।
  • गिरधारी लाल का लक्ष्य 1970 तक के रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन करना है।
  • इनके पास पुरानी फ़िल्मी पत्रिकाएं भी हैं जिनमें हिंदी फ़िल्म गीतकोश के आलावा ‘दो घड़ी मौज़, मौज़ मघ, रंगभूमि, चित्रपट, सिनेमा संसार, द मूवीज जैसी पत्रिकाएं शामिल हैं। ये पत्रिकाएं गुजराती, मराठी, हिंदीअंग्रेज़ी में हैं। जिसमें पुरानी फ़िल्मों से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं।
  • भविष्य में गिरधारी लाल संगीत प्रेमियों के लिए एक कैफे खोलने का विचार कर रहे हैं, जहां वे रिकॉर्ड के लिए एक गैलरी बनाएंगे और संगीत प्रेमियों को उनके मनपसंद गाने अपने संग्रह में से उपलब्ध करवाएंगे। फिलहाल संगीत प्रेमी उनके गानों को यूट्यूब पर सुन सकते हैं।
  • 1941 से 1950 के दौर में बने रिकॉर्ड पर गायक के नाम की जगह फ़िल्म के कलाकारों के नाम लिखे जाते थे, जिससे गायकों को विशेष पहचान नहीं मिलती थी। 1984 में लिसनर बुलेटिन पत्रिका के संपादक हरमंदिर सिंह ‘हमराज’ की हिंदी फ़िल्मकोश पुस्तक के दो वॉल्यूम मंगवाए। इनमें उन्हें फ़िल्मों के नाम, उसके बोल संगीतकार, गीतकारों के नाम तो मिले लेकिन कई जगहों पर गायकों का ज़िक्र नहीं था। गिरधारीलाल ने इन खाली जगहों को अपने श्रोता मित्रों से बातचीत के ज़रिये तथ्य इकट्ठे कर भरना शुरू किया और इस प्रकार उन्होंने गायकों को पहचान दिलाई।






अन्नपूर्णा देवी (अंग्रेज़ी: Annapurna Devi मूल नाम- रोशनआरा ख़ान, जन्म: 23 अप्रैल, 1927, मध्य प्रदेश) भारतीय शास्त्रीय संगीत शैली में सुरबहार वाद्ययंत्र (बास का सितार) बजाने वाली एकमात्र महिला उस्ताद हैं। ये प्रख्यात संगीतकार अलाउद्दीन ख़ान की बेटी और शिष्या हैं। वह विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर की पूर्व पत्नि हैं। इनके पिता तत्कालीन प्रसिद्ध ‘सेनिया मैहर घराने’ या ‘सेनिया मैहर स्कूल’ के संस्थापक थे। यह घराना 20वीं सदी में भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए एक प्रतिष्ठित घराना के रूप में अपना स्थान बनाए हुए था।

वर्ष 1950 के दशक में पंडित रवि शंकर और अन्नपूर्णा देवी युगल संगीतकार के रूप में अपनी प्रस्तुति देते रहे, विशेषकर अपने भाई अली अकबर ख़ान के संगीत विद्यालय में। लेकिन बाद में शंकर कार्यक्रमों के दौरान संगीत को लेकर अपने को असुरक्षित महसूस करने लगे क्योंकि दर्शक शंकर की अपेक्षा अन्नपूर्णा के लिए अधिक तालियाँ और उत्साह दिख़ाने लगे थे। इसके परिणाम स्वरूप अन्नपूर्णा ने सार्वजानिक कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति न देने का निश्चय कर लिया।

यद्यपि अन्नपूर्णा देवी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को कभी भी अपने पेशे के रूप में नहीं लिया और न कोई संगीत का एलबम ही बनाया, फिर भी अभी तक इन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत से प्रेम करने वाले प्रत्येक भारतीय से पर्याप्त आदर और सम्मान मिलता रहा है।

प्रारम्भिक जीवन

अन्नपूर्णा देवी (रोशनआरा ख़ान) का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को 23 अप्रैल, 1927 को ब्रिटिश कालीन भारतीय राज्य मध्य क्षेत्र (वर्तमान मध्य प्रदेश) के मैहर में हुआ था। इनके पिता का नाम अलाउद्दीन ख़ान तथा माता का नाम मदनमंजरी देवी था। इनके एकमात्र भाई उस्ताद अली अकबर ख़ान तथा तीन बहनें शारिजा, जहानारा और स्वयं अन्नपूर्णा (रोशनारा ख़ान) थीं।

पारिवारिक जीवन

अलाउद्दीन ख़ान के अनेक शिष्यों में से एक रवि शंकर भी थे और उनका विवाह अन्नपूर्णा से करा दिया गया। इन दोनों का विवाह वर्ष 1941 में हो गया था। उस समय रवि शंकर की उम्र 21 वर्ष और अन्नपूर्णा की उम्र मात्र 14 वर्ष थी। हालांकि रवि शंकर एक हिन्दू परिवार से थे जबकि अन्नपूर्णा मुस्लिम परिवार से परंतु इनके पिता को इस बात से कोई एतराज नहीं था। विवाह से ठीक पहले अन्नपूर्णा देवी ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया था। विवाह के बाद इनको एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शुभेन्द्र शंकर था, जिनकी मात्र 50 वर्ष की अवस्था में ही वर्ष 1992 में निधन हो गया जो अपने पीछे तीन बच्चों और पत्नी को छोड़ गए।

लगभग 21 वर्षों तक वैवाहिक जीवन एक साथ व्यतीत करने के बाद अन्नपूर्णा का रवि शंकर के साथ किसी बात को लेकर तलाक हो गया। इसके बाद इन्होंने कभी भी फिर से सार्वजनिक मंच पर अपने गायन-वादन का प्रस्तुतिकरण नहीं किया। ये मुंबई चली गईं और वहां पर एकाकी जीवन व्यतीत करने लगीं एवं संगीत का शिक्षण कार्य प्रारम्भ कर दिया। वर्ष 1982 में इन्होंने अपने से 13 वर्ष छोटे रूशी कुमार पंड्या से पुन: विवाह कर लिया, जिनका वर्ष 2013 में निधन हो गया।

संगीत शिक्षा

बड़ी बहन शारिजा का अल्पायु में ही निधन हो गया, दूसरी बहन जहानारा की शादी हुई परंतु उसकी सासु माँ ने संगीत से द्वेषवश उसके तानपुरे को जला दिया। इस घटना से दु:खी होकर इनके पिता ने निश्चय किया कि वे अपनी छोटी बेटी (अन्नपूर्णा) को संगीत की शिक्षा नहीं देंगे। एक दिन जब इनके पिता घर वापस आये तो उन्होंने देखा कि अन्नपूर्णा अपने भाई अली अकबर ख़ान को संगीत की शिक्षा दे रही है, इनकी यह कुशलता देखकर पिता का मन बदल गया। आगे चलकर अन्नपूर्णा देवी ने शास्त्रीय संगीत, सितार और सुरबहार (बांस का सितार) बजाना अपने पिता से सीखा। मैहर में इनके पिता अलाउद्दीन ख़ान यहां के तत्कालीन महाराजा बृजनाथ सिंह के दरबारी संगीतकार थे। इनके पिता ने जब महाराजा बृजनाथ सिंह को दरबार में यह बताया कि उनको लड़की हुई है तो महाराजा ने स्वयं ही नवजात लड़की का नाम ‘अन्नपूर्णा’ रखा था।

संगीत इनके परिवार के रग-रग में

अन्नपूर्णा देवी के पिता अलाउद्दीन ख़ान मैहर महाराज के यहां स्वयं तो एक दरबारी संगीतकार थे साथ ही इनके चाचा फ़क़ीर अफ्ताबुद्दीन ख़ान और अयेत अली ख़ान अपने पैतृक जन्म स्थान (वर्तमान बांग्लादेश) के प्रसिद्ध संगीतकार थे। इनके भाई अली अकबर ख़ान प्रसिद्ध और सम्मानित सरोद वादक थे, जिन्होंने भारत और अमेरिका में संगीत के अनेकों यादगार कार्यक्रमों में भाग लिया। इनके पूर्व पति और विश्व प्रसिद्ध सितार वादक पंडित रवि शंकर भारतीय शास्त्रीय संगीत के भारत तथा विश्व में सबसे बड़े संगीतकार माने जाते हैं। इनके एकमात्र पुत्र शुभेन्द्र शंकर (सुभो) सितार वादन में माहिर थे। सुभो ने सितार वादन में अपनी माता से गहन प्रशिक्षण लिया था। बाद में सुभो को उनके पिता रवि शंकर संगीत में पारंगत करने के लिए अपने साथ लेकर अमेरिका चले गए। शुभेन्द्र शंकर ने भी भारतीय शास्त्रीय संगीतकार के रूप में देश-विदेश में अपनी प्रस्तुति दी।

कॅरियर

अन्नपूर्णा देवी अपने पिता से संगीत की गूढ़ शिक्षा लेने के कुछ वर्षों बाद ही मैहर घराने (स्कूल) की सुरबहार (बांस का सितार) वादन की एक बहुत ही प्रभावशाली संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहीं। परिणामत: इन्होंने अपने पिता के बहुत से संगीत शिष्यों को मार्गदर्शन देना प्रारम्भ कर दिया था, इनमें प्रमुख हैं- हरिप्रसाद चौरसिया, निखिल बनर्जी, अमित भट्टाचार्य, प्रदीप बारोट और सस्वत्ति साहा (सितार वादक) और बहादुर ख़ान। इन सभी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के वाद्ययंत्रों के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान अन्नपूर्णा देवी से ही प्राप्त किया।

अन्नपूर्णा देवी ने आजीवन कोई म्यूजिक एल्बम नहीं बनाया। कहा जाता है कि उनके कुछ संगीत कार्यक्रमों को गुप्त रूप से रिकॉर्ड कर लिया गया था, जो आजकल देखने को मिल जाता है। इन्होंने हमेशा अपने को मिडिया के प्रचार-प्रसार से दूर रखा। ये हमेशा भारतीय शास्त्रीय संगीत को अपनी सम्पूर्ण क्षमता के साथ आगे बढ़ाने के बारे में सोचती रहती थीं।

पुरस्कार एवं सम्मान

अन्नपूर्णा देवी को अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिले हैं, जो इस प्रकार है- वर्ष 2004 - भारत सरकार द्वारा स्थापित ‘संगीत नाटक अकादमी’ ने इन्हें अपना (ज्वेल फेलो) घोषित किया। वर्ष 1999 - रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित ‘विश्व-भारती विश्वविद्यालय’ ने इन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से विभूषित किया। वर्ष 1991 - संगीत नाटक अकादमी द्वारा भारतीय संगीत कला को आगे बढ़ाने में इनके द्वारा दिये गये विशेष योगदान के लिए इन्हें सर्वोच्च सम्मान ‘संगीत नाटक अकादमी अवार्ड’ से नवाजा गया। वर्ष 1977 - अन्नपूर्णा देवी को भारत सरकार ने अपने तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया|

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