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मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही [[भारत]] सरकार ने 26 जनवरी,1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। भारतीय जनमानस के मन में बसा और आस्थाओं से रचाबसा पक्षी मोर, पावों क्रिस्‍तातुस, [[भारत]] का राष्‍ट्रीय पक्षी है। इसकी दो प्रजातियां हैं-  
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मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही [[भारत]] सरकार ने [[26 जनवरी]], [[1963]] को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। भारतीय जनमानस के मन में बसा और आस्थाओं से रचाबसा पक्षी मोर, पावों क्रिस्‍तातुस, [[भारत]] का राष्‍ट्रीय पक्षी है। इसकी दो प्रजातियां हैं-  
 
*नीला या भारतीय मोर (पैवो क्रिस्टेटस), जो [[भारत]] और [[श्रीलंका]] (भूतपूर्व सीलोन) में पाया जाता है।
 
*नीला या भारतीय मोर (पैवो क्रिस्टेटस), जो [[भारत]] और [[श्रीलंका]] (भूतपूर्व सीलोन) में पाया जाता है।
*हरा या जावा का मोर (पि. म्यूटिकस), जो [[म्यामांर]] (भूरपूर्व बर्मा) से जावा तक पाया जाता है।  
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*हरा या जावा का मोर (पि. म्यूटिकस), जो [[म्यांमार]] (भूरपूर्व बर्मा) से जावा तक पाया जाता है।  
  
1913 में एक पंख मिलने से शुरू हुई खोज के बाद 1936 में कांगो मोर (अफ़्रो पैवो कॉनजेनेसिस) का पता चला।  
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[[1913]] में एक पंख मिलने से शुरू हुई खोज के बाद 1936 में कांगो मोर (अफ़्रो पैवो कॉनजेनेसिस) का पता चला।  
  
 
==मोर के अन्य नाम==
 
==मोर के अन्य नाम==
 
 
*‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है।  
 
*‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है।  
*अंग्रेज़ी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं।  
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*[[अंग्रेज़ी भाषा]] में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं।  
*संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है।  
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*[[संस्कृत भाषा]] में यह मयूर के नाम से जाना जाता है।  
*अरबी भाषा में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं।
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*[[अरबी भाषा]] में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं।
 
*मोर को [[नागान्तक (मोर)|नागान्तक]] भी कहते हैं।
 
*मोर को [[नागान्तक (मोर)|नागान्तक]] भी कहते हैं।
  
 
==लक्षण==
 
==लक्षण==
भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी एक रंगीन, हंस के आकार का पक्षी, पंखे की आकृति जैसी पंखों की कलगी, आँख के नीचे सफ़ेद रंग और लंबी पतली गर्दन वाला होता है। इसकी आवाज़ अति प्रिय होती है। इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगों से भरा  होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अत्यधिक मनमोहक कांस्‍य गहरे हरे रंग के 200 लम्‍बे पंखों का गुच्‍छा होता है। मोर के इन पंखों की संख्या 150 के लगभग होती है। मादा (मोरनी) भूरे रंग की होती है, नर से थोड़ा छोटा और इसके पास रंग भरे पंखों का गुच्‍छा नहीं होता है।  
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भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी एक रंगीन, हंस के आकार का पक्षी, पंखे की आकृति जैसी पंखों की कलगी, आँख के नीचे [[सफ़ेद रंग]] और लंबी पतली गर्दन वाला होता है। इसकी आवाज़ अति प्रिय होती है। इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगों से भरा  होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अत्यधिक मनमोहक कांस्‍य गहरे हरे रंग के 200 लम्‍बे पंखों का गुच्‍छा होता है। मोर के इन पंखों की संख्या 150 के लगभग होती है। मादा (मोरनी) भूरे रंग की होती है, नर से थोड़ा छोटा और इसके पास रंग भरे पंखों का गुच्‍छा नहीं होता है।  
 
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मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परंतु यह सफ़ेद, हरे, व जामनी रंग का भी होता है। इसकी उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है। नर मोर की लंबाई लगभग 215 सेंटीमीटर तथा मादा मोर की लंबाई लगभग 50 सेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुत आसान है। नर के सिर पर बड़ी कलगी तथा मादा के सिर पर छोटी कलगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूंछ पर लंबे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। [[वर्षा ऋतु]] में मोर जब पूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं।
 
मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परंतु यह सफ़ेद, हरे, व जामनी रंग का भी होता है। इसकी उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है। नर मोर की लंबाई लगभग 215 सेंटीमीटर तथा मादा मोर की लंबाई लगभग 50 सेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुत आसान है। नर के सिर पर बड़ी कलगी तथा मादा के सिर पर छोटी कलगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूंछ पर लंबे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। [[वर्षा ऋतु]] में मोर जब पूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं।
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कांगो मोर [[अफ़्रीका]] में पाया जाने वाला एकमात्र फैसिएनिड है। इनमें नर मुख्यतः नीले और हरे रंग का होता है और इसकी पूंछ छोटी और गोल होती है; मादा लाल या हरे रंग की होती है और उसके ऊपरी हिस्से में भूरा रंग होता है। यह बहुत ऊँचा तथा देर तक नहीं उड़ पाता। परंतु इसकी दृष्टि व सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह अपने मुख्य दुश्मनों कुत्तों तथा सियारों की पकड़ में कम ही आता है।  
 
कांगो मोर [[अफ़्रीका]] में पाया जाने वाला एकमात्र फैसिएनिड है। इनमें नर मुख्यतः नीले और हरे रंग का होता है और इसकी पूंछ छोटी और गोल होती है; मादा लाल या हरे रंग की होती है और उसके ऊपरी हिस्से में भूरा रंग होता है। यह बहुत ऊँचा तथा देर तक नहीं उड़ पाता। परंतु इसकी दृष्टि व सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह अपने मुख्य दुश्मनों कुत्तों तथा सियारों की पकड़ में कम ही आता है।  
  
====नीला मोर====
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====<u>नीला मोर</u>====
 
पैवो की दोनो प्रजातियों में नर का शरीर 90-130 सेमी का और चमकीले धातुई हरे रंग के पंखों की लंबाई 150 सेमी तक होती है। ये पंख मुख्यतः ऊपरी पूंछ के हिस्सों से बने होते हैं, जो काफ़ी लंबे होते हैं। हर पंख के छोर पर आंख के समान एक सतरंगी निशान होता है, जिस पर नीले और तांबई रंग के छल्ले बने होते है। मादा को रिझाने के लिए नर अपने पंखों को ऊपर उठाकर फैला लेता है और उन्हें कंपित करता है, जिससे चमकीली झलक और सरसराहट की आवाज़ पैदा होती है।
 
पैवो की दोनो प्रजातियों में नर का शरीर 90-130 सेमी का और चमकीले धातुई हरे रंग के पंखों की लंबाई 150 सेमी तक होती है। ये पंख मुख्यतः ऊपरी पूंछ के हिस्सों से बने होते हैं, जो काफ़ी लंबे होते हैं। हर पंख के छोर पर आंख के समान एक सतरंगी निशान होता है, जिस पर नीले और तांबई रंग के छल्ले बने होते है। मादा को रिझाने के लिए नर अपने पंखों को ऊपर उठाकर फैला लेता है और उन्हें कंपित करता है, जिससे चमकीली झलक और सरसराहट की आवाज़ पैदा होती है।
  
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==मोर का महत्व==
 
==मोर का महत्व==
भगवान [[कृष्ण]] के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि [[कालिदास]] ने महाकाव्य [[‘मेघदूत’]] में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनमें एक तरफ मोर बना होता था। मुग़ल बादशाह [[शाहजहाँ]] जिस तख्त पर बैठता था, उसकी शक्ल मोर की थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाए मोर। हीरों-पन्नों से जड़े इस तख्त का नाम '[[तख्त-ए-ताऊस]]’ रखा गया। जनमानस में अनेक कहावतें और लोकोक्तियां मोर को लेकर प्रचलित हैं।   
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भगवान [[कृष्ण]] के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि [[कालिदास]] ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट [[चंद्रगुप्त मौर्य]] के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनमें एक तरफ मोर बना होता था। [[मुग़ल]] बादशाह [[शाहजहाँ]] जिस तख्त पर बैठता था, उसकी शक्ल मोर की थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाए मोर। हीरों-पन्नों से जड़े इस तख्त का नाम '[[तख्त-ए-ताऊस]]’ रखा गया। जनमानस में अनेक कहावतें और लोकोक्तियां मोर को लेकर प्रचलित हैं।   
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==पक्षियों का राजा==
 
==पक्षियों का राजा==
 
मोर एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। इसलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही सृष्टि के रचयिता ने इसके सिर पर ताज जैसी कलगी लगाई है।   
 
मोर एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। इसलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही सृष्टि के रचयिता ने इसके सिर पर ताज जैसी कलगी लगाई है।   
 
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====आकर्षण का केंद्र====
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====<u>आकर्षण का केंद्र</u>====
मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है।
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मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। [[हिन्दू धर्म]] में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है।
====सजावटी पक्षी====
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====<u>सजावटी पक्षी</u>====
 
सजावटी पक्षी के रूप में दुनिया के कई चिड़ियाघारों में मोर एक प्रमुख पक्षी है और यह पुरानी दुनिया में लंबे समय से प्रख्यात रहा है। बंदी अवस्था में हरे मोरों को अन्य पक्षियों से अलग रखना पड़ता है, क्योंकि इनका स्वभाव आक्रामक होता है। नीले मोर हालांकि गर्म और नम क्षेत्र के निवासी हैं, लेकिन ये उत्तरी क्षेत्र की ठंड में भी जीवित रह सकते हैं; हरे मोर ज़्यादा ठंड नहीं झेल सकते।
 
सजावटी पक्षी के रूप में दुनिया के कई चिड़ियाघारों में मोर एक प्रमुख पक्षी है और यह पुरानी दुनिया में लंबे समय से प्रख्यात रहा है। बंदी अवस्था में हरे मोरों को अन्य पक्षियों से अलग रखना पड़ता है, क्योंकि इनका स्वभाव आक्रामक होता है। नीले मोर हालांकि गर्म और नम क्षेत्र के निवासी हैं, लेकिन ये उत्तरी क्षेत्र की ठंड में भी जीवित रह सकते हैं; हरे मोर ज़्यादा ठंड नहीं झेल सकते।
====मोर का नृत्य====
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====<u>मोर का नृत्य</u>====
 
वर्षा ऋतु में मोर पूरी मस्ती में नाचता है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। मोर का ध्यान आते ही कई लोगों के पाँव थिरकने लगते हैं। कहते हैं मनुष्य ने नाचना मोर से ही सीखा है। नर के दरबारी नाच में पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना एक सुंदर दृश्‍य उपस्थित करता है।
 
वर्षा ऋतु में मोर पूरी मस्ती में नाचता है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। मोर का ध्यान आते ही कई लोगों के पाँव थिरकने लगते हैं। कहते हैं मनुष्य ने नाचना मोर से ही सीखा है। नर के दरबारी नाच में पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना एक सुंदर दृश्‍य उपस्थित करता है।
  
 
==भोजन==
 
==भोजन==
मोर एक सर्वाहारी पक्षी है। इसकी मुख्य खुराक घास, पत्ते, ज्वार, बाजरा, चने, [[गेहूँ]] व मकई है। इसके अतिरिक्त यह बैंगन, टमाटर, घीया तथा प्याज जैसी सब्जियाँ भी स्वाद से खाता है। अनार, केला व अमरूद जैसे फल भी यह चाव से खाता है। मोर मुख्य रूप से किसानों का मित्र-पक्षी है। यह खेतों में से कीड़े-मकोड़े, चूहे, छिपकलियां, दीमक वसांपों को खा जाता है। खेतों में खड़ी लाल मिर्च को खाकर यह किसान को थोड़ी हानि भी पहुँचाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव-आबादी तक ले आती है।
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[[चित्र:Peacock-Mathura-3.jpg|मोर<br /> Peacock|thumb|250px]]
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मोर एक सर्वाहारी पक्षी है। इसकी मुख्य खुराक घास, पत्ते, ज्वार, बाजरा, चने, [[गेहूँ]] व मकई है। इसके अतिरिक्त यह [[बैंगन]], [[टमाटर]], [[घीया]] तथा प्याज जैसी [[भारत की शाक-सब्ज़ी|सब्जियाँ]] भी स्वाद से खाता है। [[अनार]], [[केला]] [[अमरुद]] जैसे [[भारत के फल|फल]] भी यह चाव से खाता है। मोर मुख्य रूप से किसानों का मित्र-पक्षी है। यह खेतों में से कीड़े-मकोड़े, चूहे, छिपकलियां, दीमक वसांपों को खा जाता है। खेतों में खड़ी लाल मिर्च को खाकर यह किसान को थोड़ी हानि भी पहुँचाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव-आबादी तक ले आती है।
  
 
==पारिवारिक इकाई==
 
==पारिवारिक इकाई==
 
प्रजनन काल में नर दो से पांच मादाओं का हरम बनाता है, जिनमें से प्रत्येक ज़मीन में बने गड्ढे में चार से आठ सफ़ेद रंग के अंडे देती है। मादा मोर साल में दो बार अंडे देती है, जिनकी संख्या 6 से 8 तक रहती है। अंडों में से बच्चे 25 से 30 दिनों में निकल आते हैं। बच्चे तीन-चार साल में बड़े होते हैं। मोर के बच्चे कम संख्या में ही बच पाते हैं। इनमें से अधिकांश को कुत्ते तथा सियार खा जाते है। ये जानवर मोर के अंडे भी खा जाते हैं।
 
प्रजनन काल में नर दो से पांच मादाओं का हरम बनाता है, जिनमें से प्रत्येक ज़मीन में बने गड्ढे में चार से आठ सफ़ेद रंग के अंडे देती है। मादा मोर साल में दो बार अंडे देती है, जिनकी संख्या 6 से 8 तक रहती है। अंडों में से बच्चे 25 से 30 दिनों में निकल आते हैं। बच्चे तीन-चार साल में बड़े होते हैं। मोर के बच्चे कम संख्या में ही बच पाते हैं। इनमें से अधिकांश को कुत्ते तथा सियार खा जाते है। ये जानवर मोर के अंडे भी खा जाते हैं।
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१०:२४, १७ फ़रवरी २०११ का अवतरण

मोर, राष्‍ट्रीय पक्षी

मोर, राष्‍ट्रीय पक्षी
Peacock, National Bird

मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। भारतीय जनमानस के मन में बसा और आस्थाओं से रचाबसा पक्षी मोर, पावों क्रिस्‍तातुस, भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी है। इसकी दो प्रजातियां हैं-

  • नीला या भारतीय मोर (पैवो क्रिस्टेटस), जो भारत और श्रीलंका (भूतपूर्व सीलोन) में पाया जाता है।
  • हरा या जावा का मोर (पि. म्यूटिकस), जो म्यांमार (भूरपूर्व बर्मा) से जावा तक पाया जाता है।

1913 में एक पंख मिलने से शुरू हुई खोज के बाद 1936 में कांगो मोर (अफ़्रो पैवो कॉनजेनेसिस) का पता चला।

मोर के अन्य नाम

  • ‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है।
  • अंग्रेज़ी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं।
  • संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है।
  • अरबी भाषा में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं।
  • मोर को नागान्तक भी कहते हैं।

लक्षण

भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी एक रंगीन, हंस के आकार का पक्षी, पंखे की आकृति जैसी पंखों की कलगी, आँख के नीचे सफ़ेद रंग और लंबी पतली गर्दन वाला होता है। इसकी आवाज़ अति प्रिय होती है। इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगों से भरा होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अत्यधिक मनमोहक कांस्‍य गहरे हरे रंग के 200 लम्‍बे पंखों का गुच्‍छा होता है। मोर के इन पंखों की संख्या 150 के लगभग होती है। मादा (मोरनी) भूरे रंग की होती है, नर से थोड़ा छोटा और इसके पास रंग भरे पंखों का गुच्‍छा नहीं होता है।

मोर
Peacock

मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परंतु यह सफ़ेद, हरे, व जामनी रंग का भी होता है। इसकी उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है। नर मोर की लंबाई लगभग 215 सेंटीमीटर तथा मादा मोर की लंबाई लगभग 50 सेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुत आसान है। नर के सिर पर बड़ी कलगी तथा मादा के सिर पर छोटी कलगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूंछ पर लंबे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। वर्षा ऋतु में मोर जब पूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं।

कांगो मोर अफ़्रीका में पाया जाने वाला एकमात्र फैसिएनिड है। इनमें नर मुख्यतः नीले और हरे रंग का होता है और इसकी पूंछ छोटी और गोल होती है; मादा लाल या हरे रंग की होती है और उसके ऊपरी हिस्से में भूरा रंग होता है। यह बहुत ऊँचा तथा देर तक नहीं उड़ पाता। परंतु इसकी दृष्टि व सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह अपने मुख्य दुश्मनों कुत्तों तथा सियारों की पकड़ में कम ही आता है।

नीला मोर

पैवो की दोनो प्रजातियों में नर का शरीर 90-130 सेमी का और चमकीले धातुई हरे रंग के पंखों की लंबाई 150 सेमी तक होती है। ये पंख मुख्यतः ऊपरी पूंछ के हिस्सों से बने होते हैं, जो काफ़ी लंबे होते हैं। हर पंख के छोर पर आंख के समान एक सतरंगी निशान होता है, जिस पर नीले और तांबई रंग के छल्ले बने होते है। मादा को रिझाने के लिए नर अपने पंखों को ऊपर उठाकर फैला लेता है और उन्हें कंपित करता है, जिससे चमकीली झलक और सरसराहट की आवाज़ पैदा होती है।

नीले मोर के पंखो का रंग अधिकांशतः धातुई नीले-हरे रंग का होता है। हरे मोर के पंख नीले मोर के समान ही होते है और इसके शरीर के पंखों का रंग हरा और तांबई होता है। दोनों प्रजातियों की मादाओं का रंग हरा और भूरा होता है और आकार लगभग नर जितना ही होता है, लेकिन इनके लंबे पंख और क़लगी नहीं होती। प्राकृतिक रूप से दोनों प्रजातिया खुले निचले जंगलों में दिन के समय झुंड में रहती है और रात में पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर विश्राम करती है।

मोर का महत्व

भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इस पक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचा स्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्के चलते थे, उनमें एक तरफ मोर बना होता था। मुग़ल बादशाह शाहजहाँ जिस तख्त पर बैठता था, उसकी शक्ल मोर की थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाए मोर। हीरों-पन्नों से जड़े इस तख्त का नाम 'तख्त-ए-ताऊस’ रखा गया। जनमानस में अनेक कहावतें और लोकोक्तियां मोर को लेकर प्रचलित हैं।

पक्षियों का राजा

मोर एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। इसलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही सृष्टि के रचयिता ने इसके सिर पर ताज जैसी कलगी लगाई है।

मोर
Peacock

आकर्षण का केंद्र

मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गया है। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है।

सजावटी पक्षी

सजावटी पक्षी के रूप में दुनिया के कई चिड़ियाघारों में मोर एक प्रमुख पक्षी है और यह पुरानी दुनिया में लंबे समय से प्रख्यात रहा है। बंदी अवस्था में हरे मोरों को अन्य पक्षियों से अलग रखना पड़ता है, क्योंकि इनका स्वभाव आक्रामक होता है। नीले मोर हालांकि गर्म और नम क्षेत्र के निवासी हैं, लेकिन ये उत्तरी क्षेत्र की ठंड में भी जीवित रह सकते हैं; हरे मोर ज़्यादा ठंड नहीं झेल सकते।

मोर का नृत्य

वर्षा ऋतु में मोर पूरी मस्ती में नाचता है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। मोर का ध्यान आते ही कई लोगों के पाँव थिरकने लगते हैं। कहते हैं मनुष्य ने नाचना मोर से ही सीखा है। नर के दरबारी नाच में पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना एक सुंदर दृश्‍य उपस्थित करता है।

भोजन

मोर
Peacock

मोर एक सर्वाहारी पक्षी है। इसकी मुख्य खुराक घास, पत्ते, ज्वार, बाजरा, चने, गेहूँ व मकई है। इसके अतिरिक्त यह बैंगन, टमाटर, घीया तथा प्याज जैसी सब्जियाँ भी स्वाद से खाता है। अनार, केलाअमरुद जैसे फल भी यह चाव से खाता है। मोर मुख्य रूप से किसानों का मित्र-पक्षी है। यह खेतों में से कीड़े-मकोड़े, चूहे, छिपकलियां, दीमक वसांपों को खा जाता है। खेतों में खड़ी लाल मिर्च को खाकर यह किसान को थोड़ी हानि भी पहुँचाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव-आबादी तक ले आती है।

पारिवारिक इकाई

प्रजनन काल में नर दो से पांच मादाओं का हरम बनाता है, जिनमें से प्रत्येक ज़मीन में बने गड्ढे में चार से आठ सफ़ेद रंग के अंडे देती है। मादा मोर साल में दो बार अंडे देती है, जिनकी संख्या 6 से 8 तक रहती है। अंडों में से बच्चे 25 से 30 दिनों में निकल आते हैं। बच्चे तीन-चार साल में बड़े होते हैं। मोर के बच्चे कम संख्या में ही बच पाते हैं। इनमें से अधिकांश को कुत्ते तथा सियार खा जाते है। ये जानवर मोर के अंडे भी खा जाते हैं।

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