माँगे मुकरि न को गयो -रहीम  

माँगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ ।
माँगत आगे सुख लह्यो, तै ‘रहीम’ रघुनाथ ॥

अर्थ

माँगने पर कौन नहीं हट जाता ? और, ऐसा कौन है, जो याचक का साथ नहीं छोड़ देता ? पर श्रीरघुनाथजी ही ऐसै हैं, जो माँगने से भी पहले सब कुछ दे देते हैं, याचक अयाचक हो जाता है।[१]


रहीम के दोहे

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्रीराम के द्वारा विभीषण को लंका का राज्य दे डालने से यही आशय है, जबकि विभीषण ने कुछ भी माँगा नहीं था।

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः



"https://amp.bharatdiscovery.org/w/index.php?title=माँगे_मुकरि_न_को_गयो_-रहीम&oldid=548222" से लिया गया